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मौलाना लियाकत हुसैन फाज़िले तिलहरी का दो दिनी उर्स आज से शुरू

By Ten News One Desk

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मौलाना लियाकत हुसैन फाज़िले तिलहरी का दो दिनी उर्स आज से शुरू


टेन न्यूज़ ii 02 दिसम्बर 2025 ii अमुक सक्सेना, तिलहर/शाहजहांपुर


हजरत मौलाना लियाकत हुसैन फाजिले तिलहरी रहमतुबह उस्तैह का 28 वां दो दिवसीय सालाना उर्न शरीफ मोहाय कांकड़ स्थित दरगाह शरीफ पा मंगलबार (आज) शुरू होगा।

उसे में बड़ी तादाद में जागेतरीन पहुंचने की उम्मीद है। तिलहर नगर में 12 अक्टूबर वर्ष 1924 को नमाज़े फजर के बाद उनकी पैदाइश हुयी।

मौलाना लियाकत हुसैन का चराना निशापुर शहर से यहाँ आबाद हुआ था। मौलाना का पराना इत्यी मुमताज पराना में शुमार किया जाता है। वर्षों से इल्म और बुजुर्गों इस गराने की इम्तियाजी पहचान रही।

मौलाना लियाकत हुसैन के बालिदे मोहतमा मौलवी सखावत हुसैन रहमतुम्बह अलैह के इन्तकाल के समय केवल वर्षों के थे।

वालिद ने निहायत हौसले से तालीम व तरबियत तथा खानदानी रिवायत को जारी रखते हुए मौलाना को मदरसा मन्ज़ों इस्लाम बरेली शरीफ में अपने वालिद के शार्गिद मुफ्ती अजगर की सरपरस्ती में मदरसा मन्को इस्लाम बरेली पहुंचे।

लेकिन कुछ दिनों के बाद मदरसा हाफजिया कादरिया दाले अलीगढ़ में चार साल अरबी, फारसी की तालीम हासिल की। सालाना इम्तेहान में हमेशा इम्तियाजी नम्बर हालिस किये। सन् 1935 में गहाँ का तालीमी निजाम बिगड़ जाने से फलसफा मतित की आता,

बड़े दर्जे के अलीम थे मौलाना लियाकत तालीम हासिल करने के लिए उलरी भारत का मशहूर दरगाह मदामा आलिया रामपुर में दाखिला ले लिया। दर्म निजामी की तालीम के साथ आबी, फारसी के इम्तेहान भी पास करते रहे।

सन् 1941 में फालित के इम्तेहान अच्चाल से पाम किये। सन् 1944 में पंजीब यूनिवर्सिटी से मुन्शी फाजिल किया और दहें निज़ामी मुकम्मल किया। दो साल बाद वो रामपुर की रजा लाइबेरी एशिया की मशहूर लाइब्रेरियन के ओधे पर फायर हुये।

वहाँ से तिलहर लौट आये चार साल तक एनबीजेपी इण्टर कालेज में फारसी के टीचर रहे कुछ मजबूरियों के कारण उन्हें यह सिलसिला यहीं रोकना पड़ा।

शायरी का शौक मौलाना लियाकत हुसैन को शुरू से ही था। गजल व नज्म पर सामान अधिकार हासिल था। हूँ, आबी, फारसी जुबानों में कलाम लिखते थे। हजरत शाह बिलगिरामी जैसे तारीखसाज शख्सियत की सानिध्य और बेबाक शाहजहांपुरी से इस्लाहे सुखन ने मौलाना की खुबिओं का उजागर किया।

उनका कलाम उदबी दुनिया में काफी शोहरत हासिल कर चुका था। शागरी के साथ-साथ मौलाना को मजमून निवारी गप लेखान पर भी महारत हासिल थी। उन्होंने ने अरबी में कई अहम मजमून लिखे।

मौलाना लियाकत हुसैन का रुज्ञान शुरू से ही तसव्वुरू की तरफ था। एकांत को इख्तियार कर लिया। जब उनको परि तरीत की तत्तात हुई आवह ताला के क्रम से पीर रोशन जमीर आलिमें कबीर जलमा के उस्माद हजरत सायद मोहम्मद खलील कालमी चिश्ती कादरी साथी अमरोही के हाथ पर अक्टूबर 1947 पर बबैत कर ली और हज़रत ने आपको खिलाफत अत कराई। निन्दिगी भर आप जमाते आहले सुत्रत को इस्लाह फरमाते रहे।

आप एकता के प्रतीक से आरफी, फारसी और कई अन्य भाषाओं के जानकार थे। आप धर्म गुरु समाज सुधारक इमाम थे। मुरक में काफी आपके मानने वाले हैं। मुल्क का नाम रौशन किया।

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टेन न्यूज़ ii 02 दिसम्बर 2025 ii अमुक सक्सेना, तिलहर/शाहजहांपुर


हजरत मौलाना लियाकत हुसैन फाजिले तिलहरी रहमतुबह उस्तैह का 28 वां दो दिवसीय सालाना उर्न शरीफ मोहाय कांकड़ स्थित दरगाह शरीफ पा मंगलबार (आज) शुरू होगा।

उसे में बड़ी तादाद में जागेतरीन पहुंचने की उम्मीद है। तिलहर नगर में 12 अक्टूबर वर्ष 1924 को नमाज़े फजर के बाद उनकी पैदाइश हुयी।

मौलाना लियाकत हुसैन का चराना निशापुर शहर से यहाँ आबाद हुआ था। मौलाना का पराना इत्यी मुमताज पराना में शुमार किया जाता है। वर्षों से इल्म और बुजुर्गों इस गराने की इम्तियाजी पहचान रही।

मौलाना लियाकत हुसैन के बालिदे मोहतमा मौलवी सखावत हुसैन रहमतुम्बह अलैह के इन्तकाल के समय केवल वर्षों के थे।

वालिद ने निहायत हौसले से तालीम व तरबियत तथा खानदानी रिवायत को जारी रखते हुए मौलाना को मदरसा मन्ज़ों इस्लाम बरेली शरीफ में अपने वालिद के शार्गिद मुफ्ती अजगर की सरपरस्ती में मदरसा मन्को इस्लाम बरेली पहुंचे।

लेकिन कुछ दिनों के बाद मदरसा हाफजिया कादरिया दाले अलीगढ़ में चार साल अरबी, फारसी की तालीम हासिल की। सालाना इम्तेहान में हमेशा इम्तियाजी नम्बर हालिस किये। सन् 1935 में गहाँ का तालीमी निजाम बिगड़ जाने से फलसफा मतित की आता,

बड़े दर्जे के अलीम थे मौलाना लियाकत तालीम हासिल करने के लिए उलरी भारत का मशहूर दरगाह मदामा आलिया रामपुर में दाखिला ले लिया। दर्म निजामी की तालीम के साथ आबी, फारसी के इम्तेहान भी पास करते रहे।

सन् 1941 में फालित के इम्तेहान अच्चाल से पाम किये। सन् 1944 में पंजीब यूनिवर्सिटी से मुन्शी फाजिल किया और दहें निज़ामी मुकम्मल किया। दो साल बाद वो रामपुर की रजा लाइबेरी एशिया की मशहूर लाइब्रेरियन के ओधे पर फायर हुये।

वहाँ से तिलहर लौट आये चार साल तक एनबीजेपी इण्टर कालेज में फारसी के टीचर रहे कुछ मजबूरियों के कारण उन्हें यह सिलसिला यहीं रोकना पड़ा।

शायरी का शौक मौलाना लियाकत हुसैन को शुरू से ही था। गजल व नज्म पर सामान अधिकार हासिल था। हूँ, आबी, फारसी जुबानों में कलाम लिखते थे। हजरत शाह बिलगिरामी जैसे तारीखसाज शख्सियत की सानिध्य और बेबाक शाहजहांपुरी से इस्लाहे सुखन ने मौलाना की खुबिओं का उजागर किया।

उनका कलाम उदबी दुनिया में काफी शोहरत हासिल कर चुका था। शागरी के साथ-साथ मौलाना को मजमून निवारी गप लेखान पर भी महारत हासिल थी। उन्होंने ने अरबी में कई अहम मजमून लिखे।

मौलाना लियाकत हुसैन का रुज्ञान शुरू से ही तसव्वुरू की तरफ था। एकांत को इख्तियार कर लिया। जब उनको परि तरीत की तत्तात हुई आवह ताला के क्रम से पीर रोशन जमीर आलिमें कबीर जलमा के उस्माद हजरत सायद मोहम्मद खलील कालमी चिश्ती कादरी साथी अमरोही के हाथ पर अक्टूबर 1947 पर बबैत कर ली और हज़रत ने आपको खिलाफत अत कराई। निन्दिगी भर आप जमाते आहले सुत्रत को इस्लाह फरमाते रहे।

आप एकता के प्रतीक से आरफी, फारसी और कई अन्य भाषाओं के जानकार थे। आप धर्म गुरु समाज सुधारक इमाम थे। मुरक में काफी आपके मानने वाले हैं। मुल्क का नाम रौशन किया।

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