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तिलहर के मुहल्ला मीरगंज में कौमी एकता की मिशाल, कब्रिस्तान परिसर में होलिका दहन का आयोजन होता

By Ten News One Desk

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तिलहर के मुहल्ला मीरगंज में कौमी एकता की मिशाल, कब्रिस्तान परिसर में होलिका दहन का आयोजन होता



टेन न्यूज़ !! २४ मार्च २०२४ !! अमुक सक्सेना, तिलहर शाहजहांपुर


तिलहर  के मुहल्ला मीरगंज में कौमी एकता की मिशाल देखी जा सकती है कब्रिस्तान परिसर में होलिका दहन होता है। होलकाष्टक के बाद से महिलाएं होलिका स्थल पर जाकर पूजन करती हैं। यह प्रथा वर्षों से चली जा रही है। कभी किसी का आपस में कोई विवाद नहीं हुआ।

यहां पर लगभग ढाई सौ लोग आखत डालने आते हैं। इनमें तकिया टोला मुहल्ले के भी कुछ परिवार शामिल हैं। मुहल्ले के ताराचंद कश्यप ने बताया कि पूर्व में यहां पर मुस्लिम परिवारों की संख्या अधिक थी। अधिकांश रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों व जनपदों में चले गए। वर्तमान में 20 परिवार ही रहते हैं।

होलिका के लिए इन परिवारों का भी सहयोग रहता है। सालिगराम कश्यप की उम्र 75 वर्ष है। उन्होंने बताया कि यह व्यवस्था आजादी पूर्व से चली आ रही है।

कब्रिस्तान के मुतावल्ली मसूद हसन खान ने बताया कि उनके पिता मुस्तर खान के समय भी यहां पर होलिका दहन वर्षों से होता चला आ रहा है । यह शुरुआत कैसे हुई इस बारे में उन्हें ज्यादा कुछ नहीं पता। जो परंपरा चली आ रही है।

तिलहर के मुहल्ला मीरगंज में कौमी एकता की मिशाल, कब्रिस्तान परिसर में होलिका दहन का आयोजन होता

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तिलहर  के मुहल्ला मीरगंज में कौमी एकता की मिशाल देखी जा सकती है कब्रिस्तान परिसर में होलिका दहन होता है। होलकाष्टक के बाद से महिलाएं होलिका स्थल पर जाकर पूजन करती हैं। यह प्रथा वर्षों से चली जा रही है। कभी किसी का आपस में कोई विवाद नहीं हुआ।

यहां पर लगभग ढाई सौ लोग आखत डालने आते हैं। इनमें तकिया टोला मुहल्ले के भी कुछ परिवार शामिल हैं। मुहल्ले के ताराचंद कश्यप ने बताया कि पूर्व में यहां पर मुस्लिम परिवारों की संख्या अधिक थी। अधिकांश रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों व जनपदों में चले गए। वर्तमान में 20 परिवार ही रहते हैं।

होलिका के लिए इन परिवारों का भी सहयोग रहता है। सालिगराम कश्यप की उम्र 75 वर्ष है। उन्होंने बताया कि यह व्यवस्था आजादी पूर्व से चली आ रही है।

कब्रिस्तान के मुतावल्ली मसूद हसन खान ने बताया कि उनके पिता मुस्तर खान के समय भी यहां पर होलिका दहन वर्षों से होता चला आ रहा है । यह शुरुआत कैसे हुई इस बारे में उन्हें ज्यादा कुछ नहीं पता। जो परंपरा चली आ रही है।

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