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‘प्रेमानंद महाराज न तो विद्वान, न चमत्कारी’ – जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने दी खुली चुनौती

By Ten News One Desk

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‘प्रेमानंद महाराज न तो विद्वान, न चमत्कारी’ – जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने दी खुली चुनौती



टेन न्यूज़ !! २४ अगस्त २०२५ !! सोशल मीडिया @डेस्क


वृंदावन/मथुरा। ब्रजभूमि में संत परंपरा और आस्था का गढ़ माने जाने वाले वृंदावन में इन दिनों एक बयान ने सन्नाटा तोड़कर संत समाज में गहरी हलचल मचा दी है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने वृंदावन के चर्चित संत प्रेमानंद महाराज को न तो विद्वान माना और न ही चमत्कारी। उन्होंने खुली चुनौती देते हुए कहा कि यदि प्रेमानंद महाराज वास्तव में विद्वान या चमत्कारी हैं तो सामने आकर संस्कृत का एक अक्षर बोलकर दिखाएं या किसी श्लोक का अर्थ समझाएं।

रामभद्राचार्य ने मीडिया से बातचीत में कहा, “चमत्कार शब्द का अर्थ है गहन विद्वता और शास्त्रों की व्याख्या करने की क्षमता। यदि प्रेमानंद महाराज इतने ही चमत्कारी बताए जाते हैं, तो वे राधा बल या राधा सुधा की एक भी श्लोकार्थ ठीक से समझाकर दिखा दें। तभी उन्हें चमत्कारी कहा जा सकता है। अन्यथा उनकी लोकप्रियता क्षणभंगुर है, जो कुछ दिनों में समाप्त हो जाएगी।”

जगद्गुरु ने प्रेमानंद महाराज को लेकर व्यक्तिगत स्तर पर कोई दुर्भावना न होने की बात भी कही। उन्होंने कहा, “मैं प्रेमानंद से द्वेष नहीं रखता। वे मेरे बालक जैसे हैं। लेकिन यह कहना कि वे विद्वान या साधक हैं, यह सही नहीं है। लोकप्रियता होना और विद्वत्ता होना, दोनों अलग बातें हैं।”

बता दें कि प्रेमानंद महाराज ने हाल के वर्षों में अपने भक्ति प्रवचनों और भजन कार्यक्रमों के जरिए खास पहचान बनाई है। सोशल मीडिया पर उनके वीडियो लाखों लोगों तक पहुंचते हैं। उनकी लोकप्रियता युवाओं और महिलाओं में तेजी से बढ़ी है। कई भक्त उन्हें चमत्कारी संत मानते हैं। लेकिन जगद्गुरु रामभद्राचार्य का यह बयान उनकी छवि पर सवाल खड़े करता है।

बयानबाजी यहीं तक सीमित नहीं रही। रामभद्राचार्य ने गांधी जी को लेकर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “देश के विभाजन के लिए सीधे तौर पर गांधी जी जिम्मेदार थे। वे जवाहरलाल नेहरू से इतना प्रेम करते थे कि उनकी गलतियों को नजरअंदाज करते रहे। स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान मात्र 1% था जबकि क्रांतिकारियों का योगदान 99% रहा। आजादी दिलाने का वास्तविक श्रेय क्रांतिकारियों को जाता है।”

उन्होंने इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि भारत पर आक्रमण हमेशा बाहर से हुआ—मुसलमानों और ईसाइयों की ओर से। “सनातन धर्मावलंबियों ने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया। लेकिन भारत पर अकबर से लेकर अन्य आक्रांताओं ने हमला किया और मीना बाजार लगाकर महिलाओं की इज्जत तक लूटी।”

रामभद्राचार्य के इस बयान के बाद संत समाज में चर्चा तेज हो गई है। एक ओर उनके समर्थक इसे संत परंपरा और विद्वता की रक्षा बताते हैं, तो दूसरी ओर प्रेमानंद महाराज के अनुयायी इसे अस्वीकार कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रेमानंद महाराज का मार्ग भक्ति और सेवा का है, चमत्कार दिखाना उनका उद्देश्य नहीं है।

इस विवाद ने संत समाज में आस्था बनाम विद्वता का प्रश्न खड़ा कर दिया है। एक तरफ वे संत हैं, जो शास्त्र, वेद और संस्कृत पर गहरी पकड़ के कारण पूजनीय माने जाते हैं। दूसरी ओर वे संत हैं, जो भक्ति, भजन और सेवा भाव से लोकप्रियता पाते हैं। ऐसे में देखना यह होगा कि प्रेमानंद महाराज इस चुनौती पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं और क्या यह विवाद संत समाज में और गहराएगा।

‘प्रेमानंद महाराज न तो विद्वान, न चमत्कारी’ – जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने दी खुली चुनौती

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वृंदावन/मथुरा। ब्रजभूमि में संत परंपरा और आस्था का गढ़ माने जाने वाले वृंदावन में इन दिनों एक बयान ने सन्नाटा तोड़कर संत समाज में गहरी हलचल मचा दी है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने वृंदावन के चर्चित संत प्रेमानंद महाराज को न तो विद्वान माना और न ही चमत्कारी। उन्होंने खुली चुनौती देते हुए कहा कि यदि प्रेमानंद महाराज वास्तव में विद्वान या चमत्कारी हैं तो सामने आकर संस्कृत का एक अक्षर बोलकर दिखाएं या किसी श्लोक का अर्थ समझाएं।

रामभद्राचार्य ने मीडिया से बातचीत में कहा, “चमत्कार शब्द का अर्थ है गहन विद्वता और शास्त्रों की व्याख्या करने की क्षमता। यदि प्रेमानंद महाराज इतने ही चमत्कारी बताए जाते हैं, तो वे राधा बल या राधा सुधा की एक भी श्लोकार्थ ठीक से समझाकर दिखा दें। तभी उन्हें चमत्कारी कहा जा सकता है। अन्यथा उनकी लोकप्रियता क्षणभंगुर है, जो कुछ दिनों में समाप्त हो जाएगी।”

जगद्गुरु ने प्रेमानंद महाराज को लेकर व्यक्तिगत स्तर पर कोई दुर्भावना न होने की बात भी कही। उन्होंने कहा, “मैं प्रेमानंद से द्वेष नहीं रखता। वे मेरे बालक जैसे हैं। लेकिन यह कहना कि वे विद्वान या साधक हैं, यह सही नहीं है। लोकप्रियता होना और विद्वत्ता होना, दोनों अलग बातें हैं।”

बता दें कि प्रेमानंद महाराज ने हाल के वर्षों में अपने भक्ति प्रवचनों और भजन कार्यक्रमों के जरिए खास पहचान बनाई है। सोशल मीडिया पर उनके वीडियो लाखों लोगों तक पहुंचते हैं। उनकी लोकप्रियता युवाओं और महिलाओं में तेजी से बढ़ी है। कई भक्त उन्हें चमत्कारी संत मानते हैं। लेकिन जगद्गुरु रामभद्राचार्य का यह बयान उनकी छवि पर सवाल खड़े करता है।

बयानबाजी यहीं तक सीमित नहीं रही। रामभद्राचार्य ने गांधी जी को लेकर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “देश के विभाजन के लिए सीधे तौर पर गांधी जी जिम्मेदार थे। वे जवाहरलाल नेहरू से इतना प्रेम करते थे कि उनकी गलतियों को नजरअंदाज करते रहे। स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान मात्र 1% था जबकि क्रांतिकारियों का योगदान 99% रहा। आजादी दिलाने का वास्तविक श्रेय क्रांतिकारियों को जाता है।”

उन्होंने इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि भारत पर आक्रमण हमेशा बाहर से हुआ—मुसलमानों और ईसाइयों की ओर से। “सनातन धर्मावलंबियों ने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया। लेकिन भारत पर अकबर से लेकर अन्य आक्रांताओं ने हमला किया और मीना बाजार लगाकर महिलाओं की इज्जत तक लूटी।”

रामभद्राचार्य के इस बयान के बाद संत समाज में चर्चा तेज हो गई है। एक ओर उनके समर्थक इसे संत परंपरा और विद्वता की रक्षा बताते हैं, तो दूसरी ओर प्रेमानंद महाराज के अनुयायी इसे अस्वीकार कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रेमानंद महाराज का मार्ग भक्ति और सेवा का है, चमत्कार दिखाना उनका उद्देश्य नहीं है।

इस विवाद ने संत समाज में आस्था बनाम विद्वता का प्रश्न खड़ा कर दिया है। एक तरफ वे संत हैं, जो शास्त्र, वेद और संस्कृत पर गहरी पकड़ के कारण पूजनीय माने जाते हैं। दूसरी ओर वे संत हैं, जो भक्ति, भजन और सेवा भाव से लोकप्रियता पाते हैं। ऐसे में देखना यह होगा कि प्रेमानंद महाराज इस चुनौती पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं और क्या यह विवाद संत समाज में और गहराएगा।

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