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38वां उर्स मुबारक “जश्ने साबिर” बड़े ही अकीदत व शान से मनाया गया, शायरों ने अपने कलाम से बांधा समां

By Ten News One Desk

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38वां उर्स मुबारक “जश्ने साबिर” बड़े ही अकीदत व शान से मनाया गया, शायरों ने अपने कलाम से बांधा समां



टेन न्यूज।। 07 अक्टूबर 2025 ।। रामचंद्र सक्सेना ब्यूरो, पीलीभीत


जनपद के ग्राम जलीलपुर जहांगीराबाद (बुलंदशहर) में हर साल की तरह इस बार भी 38वां उर्स मुबारक “जश्ने साबिर” बड़े अदब और एहतराम के साथ मनाया गया। इस मौके पर एक शानदार अदबी मुशायरे का आयोजन किया गया, जिसमें दूर-दराज़ से आए नामचीन शायरों ने अपनी शायरी से महफ़िल को रंगीन कर दिया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता मोहम्मद नौशाद साबरी साहब ने की, जबकि मुशायरे की निज़ामत (संचालन) हर साल की तरह इस साल भी अपने खास अंदाज में दिल्ली से आए मशहूर शायर सैयद अली अब्बास नौगांववी ने की।

गांव के प्रधान अय्यूब कुरैशी, डॉ. इमरान और तमाम मेहमानों ने फ़ीता काटकर व शमा रोशन कर मुशायरे का शुभारंभ किया।
सबसे पहले सैयद अली अब्बास नौगांववी ने नाते पाक पेश कर महफ़िल को रूहानी रंग दे दिया।

मुशायरे के चुनिंदा शेरों पर जनता ने खूब दाद दी:

🖋️ डॉ. सैयद निज़ामी शैदा राही
“ना जाओ छोड़ के बरसात का यह मौसम है,
करीब आओ मुलाकात का ये मौसम है।”

🖋️ सैयद अली अब्बास नौगांववी
“सड़क पर गिर के उठ जाते हैं लेकिन,
नज़र से गिर के कब कोई उठा है।”

🖋️ फ़हीम कमलापुरी
“ज़माने का मेरे यारों यही दस्तूर होता है,
सताया उसको जाता है कि जो कमज़ोर होता है।”

🖋️ एन. मीम कौसर
“मैं अपने दर्द सुनता रहा ज़माने को,
ज़माने वाले मगर वाह-वाह करते रहे।”

🖋️ इरशाद अहमद शरर एडवोकेट
“ऐसे लम्हात भी गुज़रे हैं मोहब्बत में शरर,
याद आई है तो फिर नींद नहीं आई है।”

🖋️ प्रिंस नाज सियानवी
“वो परेशान इस कदर है क्या करूं,
कशमकश में दिल किधर है क्या करूं।”

🖋️ डॉ. फ़िरासत जमाल डमडम (हास्य व्यंग्य)
“कल मेरा बहनोई जो आया दाल बनी थी मेरे घर,
आज बहू का भैया आया झट से मुर्गा काट दिया।”

🖋️ असलम बुलंदशहरी
“अब आंखें जवानी में मुझे घूर रहा है,
बचपन से मेरी आंखों का तू नूर रहा है।”

🖋️ राशिद नागपुरी
“मैं अपनी बेबसी पर रो दिया बच्चों ने जब बोला,
नहीं जा पाएंगे हम इस बार अब्बा जान मेले में।”

🖋️ अशोक साहब
“हदों के पार जाना चाहते हैं,
परिंदा पर जलाना चाहते हैं।”

इनके अलावा रेहान सियानवी, शहजाद नानपारवी, हकीम अब्दुल सत्तार गुल बुलंदशहरी ने भी अपने-अपने कलाम से समां बांध दिया।

महफ़िल में श्रोताओं की भारी भीड़ रही। मुशायरा देर रात दो बजे तक चलता रहा और अंत में सलाम व दुआ के साथ सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।

रिपोर्ट – रामचंद्र सक्सेना, जिला पीलीभीत संवाददाता

38वां उर्स मुबारक “जश्ने साबिर” बड़े ही अकीदत व शान से मनाया गया, शायरों ने अपने कलाम से बांधा समां

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38वां उर्स मुबारक “जश्ने साबिर” बड़े ही अकीदत व शान से मनाया गया, शायरों ने अपने कलाम से बांधा समां



टेन न्यूज।। 07 अक्टूबर 2025 ।। रामचंद्र सक्सेना ब्यूरो, पीलीभीत


जनपद के ग्राम जलीलपुर जहांगीराबाद (बुलंदशहर) में हर साल की तरह इस बार भी 38वां उर्स मुबारक “जश्ने साबिर” बड़े अदब और एहतराम के साथ मनाया गया। इस मौके पर एक शानदार अदबी मुशायरे का आयोजन किया गया, जिसमें दूर-दराज़ से आए नामचीन शायरों ने अपनी शायरी से महफ़िल को रंगीन कर दिया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता मोहम्मद नौशाद साबरी साहब ने की, जबकि मुशायरे की निज़ामत (संचालन) हर साल की तरह इस साल भी अपने खास अंदाज में दिल्ली से आए मशहूर शायर सैयद अली अब्बास नौगांववी ने की।

गांव के प्रधान अय्यूब कुरैशी, डॉ. इमरान और तमाम मेहमानों ने फ़ीता काटकर व शमा रोशन कर मुशायरे का शुभारंभ किया।
सबसे पहले सैयद अली अब्बास नौगांववी ने नाते पाक पेश कर महफ़िल को रूहानी रंग दे दिया।

मुशायरे के चुनिंदा शेरों पर जनता ने खूब दाद दी:

🖋️ डॉ. सैयद निज़ामी शैदा राही
“ना जाओ छोड़ के बरसात का यह मौसम है,
करीब आओ मुलाकात का ये मौसम है।”

🖋️ सैयद अली अब्बास नौगांववी
“सड़क पर गिर के उठ जाते हैं लेकिन,
नज़र से गिर के कब कोई उठा है।”

🖋️ फ़हीम कमलापुरी
“ज़माने का मेरे यारों यही दस्तूर होता है,
सताया उसको जाता है कि जो कमज़ोर होता है।”

🖋️ एन. मीम कौसर
“मैं अपने दर्द सुनता रहा ज़माने को,
ज़माने वाले मगर वाह-वाह करते रहे।”

🖋️ इरशाद अहमद शरर एडवोकेट
“ऐसे लम्हात भी गुज़रे हैं मोहब्बत में शरर,
याद आई है तो फिर नींद नहीं आई है।”

🖋️ प्रिंस नाज सियानवी
“वो परेशान इस कदर है क्या करूं,
कशमकश में दिल किधर है क्या करूं।”

🖋️ डॉ. फ़िरासत जमाल डमडम (हास्य व्यंग्य)
“कल मेरा बहनोई जो आया दाल बनी थी मेरे घर,
आज बहू का भैया आया झट से मुर्गा काट दिया।”

🖋️ असलम बुलंदशहरी
“अब आंखें जवानी में मुझे घूर रहा है,
बचपन से मेरी आंखों का तू नूर रहा है।”

🖋️ राशिद नागपुरी
“मैं अपनी बेबसी पर रो दिया बच्चों ने जब बोला,
नहीं जा पाएंगे हम इस बार अब्बा जान मेले में।”

🖋️ अशोक साहब
“हदों के पार जाना चाहते हैं,
परिंदा पर जलाना चाहते हैं।”

इनके अलावा रेहान सियानवी, शहजाद नानपारवी, हकीम अब्दुल सत्तार गुल बुलंदशहरी ने भी अपने-अपने कलाम से समां बांध दिया।

महफ़िल में श्रोताओं की भारी भीड़ रही। मुशायरा देर रात दो बजे तक चलता रहा और अंत में सलाम व दुआ के साथ सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।

रिपोर्ट – रामचंद्र सक्सेना, जिला पीलीभीत संवाददाता

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